SOURCE - जंगलकथा
मैं सोचता हूं कि मेरी ही तरह आप लोगों के मन में भी कभी न कभी कबर बिज्जू को लेकर भय और रहस्य का संचार जरूर हुआ होगा। बात डराने वाली है भी। किसी जीव के बारे में अगर यह सोचा जाता हो कि वह कब्र को खोद कर उसमें रखी लाश को खा जाता है। खासतौर पर बच्चों की। अगर इस तरह की भ्रांति किसी जीव के बारे में फैला दी जाए, वह आम धारणा बन जाए तो उससे डरना और नफरत करना स्वाभाविक ही है।
जी हां, कबर बिज्जू के बारे में ऐसा ही भ्रम और डर हमारे बचपन से हमारे मन में डाल दिया जाता है। मैं खुद इसका गवाह हूं। अपने कुछ दोस्तों के अनुभवों के आधार पर भी यह कह सकता हूं। मुझे लगता है कि आप में से भी बहुत सारे लोगों के अनुभव इससे अलग नहीं होंगे। हो सकता है कि कबर बिज्जू के नाम का इस्तेमाल बचपन में आपको भी डराने के लिए किया गया हो।
लेकिन, मैं आपको बता दूं कि यह जीव डरावना जरा भी नहीं है। कबर खोद कर लाश निकालने और उसे खाने की बात सरासर झूठी है। यह एक प्रकार का भ्रम है, जो हमारे दिमाग में भरा गया है। कबर बिज्जू नेवले जैसी शकल-सूरत वाला एक जीव होता है। जैसे नेवले को अगर दस गुना बड़ा कर दिया जाए तो वह कबर बिज्जू जैसा दिखने लगेगा। कुछ लोग इसे छोटे आकार का कुत्ता समझ लेते हैं तो कुछ लोग इसे बड़े आकार की बिल्ली समझ लेते हैं। मुझे तो इसके अंदर नेवला, कुत्ता और बिल्ली तीनों की ही छवि दिखती है। यह रात्रिचर होता है। इसलिए इसकी आंखें हमारी आंखों के औसत से काफी बड़ी होती हैं। नीचे जो फोटो आप देख रहे हैं, ये वाले महाशय दिल्ली कैंट में एक घर की रसोई में घुसे हुए थे। अपनी रसोई में उन्हें देखकर परिवार सदमें आ गया। जानकारी पाकर मौके पर पहुंची वाइल्ड लाइफ एसओएस की टीम ने उन्हें वहां से निकाला।
संस्था के डिप्टी डायरेक्टर वसीम अकरम बताते हैं कि एशियन पॉम सीवेट (पैराडाक्सोरस हरमफेरोडिटस) एक लंबे नेवले जैसा जीव होता है जो एक बड़े पर्यावास में रहता है। यह रात्रिचर प्राणी है और स्थानीय स्तर पर लोग इसे कबर बिज्जू या बिज्जू भी कहा करते हैं। उनके मुताबिक सीवेट कैट ईकोसिस्टम में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। वे चूहों का शिकार करके उनकी तादाद पर नियंत्रण लगाते हैं। जबकि, फलों को खाकर उनके बीजों को तमाम जगहों तक फैलाने में भी मदद करते हैं।
अगर आप अपने दिमाग के पूर्वाग्रहों को दूर भगा दें तो आपको यह डरावना भी बिलकुल नहीं लगेगा। दिल्ली अरावली के पहाड़ों और यमुना नदी के बीच में बसी हुई है। सौ साल पहले भी इस शहर का आकार बेहद छोटा था और यहां पर बहुत ही कम लोग रहते थे। तमाम किस्म के वन्यजीव अरावली और यमुना के बीच बसे इस पर्यावास रहते थे। लेकिन, इंसानी आबादी के विस्तार ने इन जीवों के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी है। वे इधर-उधर, छिपते-छिपाते, किसी प्रकार से सर्वाइव करने का प्रयास करते हैं।
ऐसे में हमारी नफरत उन्हें और तेजी से मार देगी...