जब कभी मिल जाती है फ़ुरसत
वर्तमान के शहर से
तब-तब मैं आ जाता हूँ
याद के गाँव में
सूंघ लेता हूँ
माटी की महक
पी लेता हूँ कुएँ का जल
नहा लेता हूँ नदी में
खा लेता हूँ आम-अमरूद
और सो जाता हूँ
हरी-हरी घास पर
जब भी अतीत के चलचित्र
तैरने लगते हैं
मेरी निगाहों में
तब, वो सारी ख़ुशबुएँ
जो छूट गई कहीं राह में
सब की सब
चली आती हैं
याद के गाँव से
वर्तमान के शहर तक।
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कवि परिचयः
जिला एवं सत्र न्यायालय, गाजियाबाद में 22 वर्षों से अधिवक्ता के रूप में कार्यरत्।
कविता संग्रह - रेशमी कमल, गिरती हैं दिवारें।
कहानी संग्रह - परदों के उस पार, वक्त से रूबरू।
निवासः फ्लैट न0 - 907, टॉवर न0 - 10, पंचशील प्रिमरोज, हापुड़ रोड , गाजियाबाद।
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