एक्वेरियम

कभी-कभी हड़बड़ी

या फिर 

हमारी ही असावधानी से

 

हाथ से छूटकर

फर्श पर गिरकर

 

टूट जाता है एक्वेरियम

 

हम अपनी ही

आँखों के सामने

 

बहते हुए पानी

और तड़पती हुई मछलियों को

देखते हैं एकटक ।

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कवि परिचयः
एसोसिएट प्रोफेसर
हिंदी विभाग,राजधानी कॉलेज
राजागार्डन,दिल्ली - 110015