याद के गाँव से
जब कभी मिल जाती है फ़ुरसत वर्तमान के शहर से तब-तब मैं आ जाता हूँ याद के गाँव में सूंघ लेता हूँ माटी की महक पी लेता हूँ कुएँ का जल नहा लेता हूँ नदी में खा लेता हूँ आम-अमरूद और सो जाता हूँ हरी-हरी घास पर जब भी अतीत के चलचित्र तैरने लगते हैं मेरी निगाहों में तब, वो सारी ख़ुशबुएँ जो छूट गई कहीं राह में…
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कोरोनावायरस के प्रकोप के बीच गंगा हमें शायद जैविक हमलों से बचा पाती, अगर उसे बहने दिया जाता
सौ साल भी नहीं हुए निंजा वायरस हमारी गंगा नदी में इफरात पाए जाते थे। वैज्ञानिक इन्हें बैक्टेरियोफाज कहते हैं। संक्रमण फैलने से रोकने में इनका महत्व समझना चाहिए।   एक वायरस होता है, निंजा वायरस कहते हैं उसे। निंजा यानी योद्धा। सौ साल भी नहीं हुए ये निंजा वायरस हमारी गंगा नदी में इफरात पाए जाते थे। व…
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एक्वेरियम
कभी-कभी हड़बड़ी या फिर  हमारी ही असावधानी से   हाथ से छूटकर फर्श पर गिरकर   टूट जाता है एक्वेरियम   हम अपनी ही आँखों के सामने   बहते हुए पानी और तड़पती हुई मछलियों को देखते हैं एकटक । .................................................................................................. कवि परिचयः एसोसिएट …
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विहँस रहा क्यों सेमल वृक्ष
ठहर गया है समय ठहर गई हैं दशों-दिशाएँ ठहर गया है सभ्यता के विकास का प्रतीक पहिया ठहर गया है आवागमन निकल गई है हवा ‘वैश्विकरण’ के ग़ुब्बारे की गिरने लगी हैं पूँजीवाद को महिमामंडित करती गगनचुंबी मीनारें निरर्थक साबित हो रहा है कई हज़ार सालों की यात्रा के दौरान अर्जित किया गया ज्ञान-विज्ञान घूम रहा है…
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गीली क़मीज़
बहुत गर्म है मेरे शहर की हवा बहती भी है सरर...सरर... बहुत तेज़ सुखा डाली हैं इसने शहर के जिस्म को गीला रखने वाली संवेदना की सभी झीलें सुखा डाले हैं सभी वट-वृक्ष अब मयस्सर नहीं मेरे शहर में जेठ की दोपहर में किसी राहगीर को दो घूँट पानी मैं भी हूँ प्यासा बहुत भटकता फिरता हूँ यहाँ-वहाँ बचा लेना चाहता ह…
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